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शनिवार, 8 अगस्त 2009

ई-मेल से बढ़ाएं मेल, जरा बच के


दुनियाभर में आई सूचना और संचार क्रांति से हमें अगर किसी चीज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वे हैं मोबाइल फोन और इंटरनेट। इंटरनेट ने आपसी संपर्क और सूचना के आदान प्रदान के क्षेत्र में आमूलचूल तब्दीली लाने में काफी अहम भूमिका निभाई है।

इंटरनेट पर मौजूद 'सर्च इंजन' के अलावा 'ई-मेल' यानी इलेक्ट्रानिक मेल सेवा संचार क्रांति में खासी मददगार साबित हुई है। ई-मेल की मदद से दुनिया के किसी भी कोने में बैठे शख्स से हम बात कर सकते हैं। शर्त बस इतनी है कि वह शख्स इंटरनेट की सेवा से महरूम न हो।

'ई-मेल' के फायदे के बारे में साइबर मामलों के जाने माने विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा कि 'ई-मेल' एक डिजिटल सेवा है जिसके इस्तेमाल से एक दूसरे के संपर्क में रहने के अलावा किसी चीज का प्रचार-प्रसार भी किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि ई-मेल के आविष्कार के पीछे मकसद दो या दो से अधिक लोगों के बीच सूचना का तेजी से आदान-प्रदान करना था, लेकिन अब इसका गलत इस्तेमाल भी धड़ल्ले से हो रहा है।

दुग्गल का कहना है कि ई मेल के जरिए जहां किसी की मानहानि हो सकती है वहीं, एनोनिमिर्टी यानी अपना असली नाम छुपाकर इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि कोई भी शख्स किसी के ई मेल आई डी यानी किसी अन्य की पहचान और पासवर्ड जानकर दूसरों को धमकी भरा संदेश भेज सकता है और इस मामले की जांच होने पर वह शख्स शक के दायरे में आएगा, जिसके ई मेल आई डी से धमकी दी गई।

साइबर क्राइम और खासतौर से ई मेल के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने भी कुछ कदम उठाए हैं। इस बारे में दिल्ली पुलिस के उपायुक्त शिवेश सिंह ने कहा कि हम अखबारों, टीवी चैनलों और अपनी वेबसाइट की मदद से लोगों को इस बात से वाकिफ करा रहे हैं कि कैसे सुरक्षित तरीके से ई-मेल का इस्तेमाल किया जाए। लोगों से काम खत्म होने के बाद सही तरीके से साइन आउट करने, किसी को भूलकर भी अपना पासवर्ड नहीं बताने की अपील की जाती है। उन्होंने कहा कि आतंकियों द्वारा भी ई मेल के गलत इस्तेमाल की बातें सामने आ चुकी हैं।

ब्लैकबेरी की मदद से गुप्त ई मेल भेजे जाने के बारे में सिंह ने बताया कि ब्लैकबेरी में एक खास कोड का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कोई चाहकर भी किसी का संदेश नहीं पढ़ सकता और आतंकी इसका गलत फायदा उठाते हैं।

साइबर क्राइम से जुड़े मामलों के जाने माने वकील दुग्गल ई-मेल के गलत इस्तेमाल के मामले में सजा के प्रावधान बारे में कहते हैं कि मानहानि के मामले में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत तीन साल की सजा और पांच लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।

इसी तरह 'स्पैमिंग', यानी किसी ऐसे व्यक्ति से आपको ई-मेल मिलना जिसे आपने आमंत्रित ही नहीं किया हो, को भारत सहित दुनिया के कई देशों में अपराध घोषित किया गया है।

ई-मेल इस्तेमाल करने वालों के सामने आने वाली एक बहुत ही आम समस्या है उनके एकाउंट में वायरस का संचार। दूसरों के एकाउंट में वायरस भेजना भी एक दंडनीय अपराध है। इसमें भी आईटी कानून के तहत तीन साल की सजा हो सकती है।

दुग्गल के अनुसार अभी तक भारत में साइबर क्राइम के तहत तीन लोगों को सजा सुनाई जा चुकी है। उन्होंने 2006 में सामने आए तमिलनाडु के एक मामले के बारे में बताया कि वहां एक व्यक्ति ने अपनी पूर्व महिला मित्र की तस्वीर से उसका चेहरा निकालकर उसे एक निर्वस्त्र माडल की तस्वीर पर लगा दिया और फिर वह तस्वीर उस लड़की के परिवार तथा उसके दोस्तों को भेज दी। इस मामले में एक अदालत ने मानहानि के आरोप में दोषी पाते हुए उस व्यक्ति को तीन साल की सजा सुनाई।

ई-मेल के इस्तेमाल की शुरुआत का इतिहास 1971 से मिलता है। सबसे पहले अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली कंपनी 'बोल्ट बेरानेक एंड न्यूमैन' [बीबीएन] के कंप्यूटर इंजीनियर रहे रे टामलिनसन ने वर्ष 1971 में ई-मेल का इस्तेमाल किया। यह पहला इस्तेमाल एक साथ रखे गए दो कम्प्यूटरों के बीच हुआ था।

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