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रविवार, 16 अगस्त 2009

मंहगाई के ग्रहण की मारी चीनी हमारी


मंहगाई से सभी हलकान हैं दालों के बाद अब महंगाई ने चीनी की मिठास को फीका कर दिया है। देखते ही देखते तीन माह के अंदर चीनी के दाम दो गुने बढ़ गये हैं। जिसके कारण आम आदमी के घर में बनने वाली खीर और चाय का स्वाद अब एक दम फीका हो गया है।

विदित हो लगभग तीन माह पहले 17 से 18 रुपये किलो से लेकर 20 रुपये तक बाजार में बिक रही थी। लोकसभा के चुनाव के बाद एक दम बाजार से सरकार का नियंत्रण सा हट गया हो बिचौलिये हावी हो गये और इन्हीं तीन माह के अंदर अब चीनी सात वें आसमान पर पहुंच गई है। वैसे थोक में चीनी के दाम 30 से 31 रुपये किलो चल रहे हैं जबकि फुटकर में अब चीनी 32 से 34 रुपये किलो बिक रही है।

बाजार में चीनी पर छाई महंगाई के दो कारण बताये जा रहे हैं एक सूखा के कारण गन्ना की फसल का प्रभावित होना तथा दूसरा सबसे बड़ा कारण निर्यात का बताया जा रहा है। लेकिन जो असली कारण है उसे छुपाया जा रहा है थोक और फुटकर व्यापारी चीनी को कृत्रिम कमी दर्शा कर अतिरिक्त मुनाफा कमाने के उद्देश्य से चीनी को दबाये बैठे हैं। चीनी की दलाली करने वाले व्यापारियों पर जिला प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। यही वजह है कि खुले बाजार में चीनी के दाम हर रोज बढ़ते ही जा रहे हैं।

चीनी व्यापारी अब तो यह भी कहने लगे हैं कि चंद दिनों में बाजार में चीनी की कमी के कारण भाव और बढ़ेगें कुछ व्यापारी तो अब कह रहे हैं कि चीनी जल्दी ही 40 से 45 रुपये किलो तक पहुंच जायेगी। बाजार में चीनी है ही नहीं जबकि सरकार और जिला प्रशासन चीनी का पर्याप्त भण्डार होने का दावा कर रहे हैं।

चीनी की महंगाई के लिए जो भी कारण है एक बात तो साफ है कि आम उपभोक्ता अब चीनी को खा नहीं सकेगा। काफी प्रयास करने पर मात्र स्वाद ही चख सकेगा। चीनी की महंगाई ने राशन की चीनी को भी अपने आगोश में ले लिया है कोटा डीलर अब चीनी की काला बाजारी करने में जुट गये हैं। कोटा डीलर कार्ड धारकों को गुमराह कर कहने लगे हैं कि अब कोटा की चीनी आना बंद हो गई है। गांव का गरीब उपभोक्ता कोटा डीलर पर विश्वास कर अपने हक की चीनी के ही बिना फीका त्यौहार मनाने को मजबूर हो रहा है।

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