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सोमवार, 1 जून 2009

आसमान नहीं जीत लाये राहुल...







कांग्रेस 204 सीट जीत क्या गयी उसका पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं। 1984 में 414 सीट जीतनेवाली कांग्रेस इसबार 204 सीट पाकर जीत के जश्न की आगोश में इतना मदहोश है कि सच्चाई स्वीकारने से कतरा रही है। इस चुनाव की एक हीं सच्चाई है कि भाजपा हारी है, न कि कांग्रेस जीती है। जीत का सेहरा जिस प्रकार राहुल गाँधी के सर बांधा जा रहा है, उससे साफ है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में परिवारतंत्र किस कदर हावी है। यह सच है कि कांग्रेस से कई युवा इसबार संसद पहुंचे हैं। लेकिन उनका पृष्ठभूमि पर नज़र डालने से सच्चाई कुछ और भी नज़र आती है। मैं यहाँ कुछ युवा सांसदों का जिक्र कर रहा हूँ, जो कांग्रेस का झंडा लेकर संसद पहुंचे हैं।
* ज्योतिरादित्य सिंधिया : पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया के बेटे हैं।
* सचिन पायलट : पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलेट के पुत्र हैं।
* १५वीं लोकसभा में सबसे युवा संसद २६ वर्षीय मुहम्मद हमदुल्ला सईद : पूर्व केंद्रीय मंत्री पी० एम० सईद के बेटे हैं।
* संदीप दीक्षित : दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र हैं।
* जगन रेड्डी : आँध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई० एस० रेड्डी के पुत्र हैं।
* नितेश राणे : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के पुत्र हैं।
* जितिन प्रसाद : पूर्व कांग्रेसी नेता जितेन्द्र प्रसाद सिंह के पुत्र हैं।
यानी जितने भी युवा कांग्रेस के बैनर तले संसद पहुंचे हैं वे जमीं से राजनीतिक सफ़र शुरू कर वहां नहीं पहुंचे हैं। बल्कि एक आम कार्यकर्ता संघर्ष करते-करते जहाँ तक पहुँच पाता है वहां से उनकी शुरुआत हुयी है। कहने में संकोच नहीं इन्हें राजनीति विरासत में मिली है, जो वंशवाद का प्रतिक है।
अजीब सी विडम्बना है कि 60 साल की परिपक्व हो चुकी भारतीये लोकतंत्र में ज्यादातर सत्ता कांग्रेस के हाथों में रही है, और 150 साल की बूढी हो चुकी कांग्रेस अभी भी एक परिवार की पार्टी बनी हुयी है। जवाहर, इंदिरा, राजीव, सोनियां के बाद अब राहुल की ताजपोशी की तैयारी है। राहुल 14 वीं लोकसभा के सदस्य भी रहे हैं। ताजपोशी के पहले उनकी कार्यछमता का आकलन करना जरुरी है। कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी 14वीं लोकसभा में 14 सत्रों में आयोजित 296 बैठकों में महज़ चार बार अपने उदगार व्यक्त किये, तथा सिर्फ तीन सवाल पूछे। वहीँ सचिन पायलेट ने 16 बार सवाल पूछे तथा एक बार परमाणु करार पर राय व्यक्त किये। यहाँ मैं एक और युवा संसद का जिक्र करना चाहूँगा। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह ने 52 बार बोले, 590 सवाल दागे, दमदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपने राय व्यक्त किये।
जहाँ तक राहुल की बात है, लंदन की आबोहवा में पले-बढे राहुल गमले में उगी हुयी पौधे की तरह थे, जिन्हें भारतीय राजनीति की हवा से खुद उनकी माँ की आँचल बचा रही थी। अचानक उन्हें अमेठी की खानदानी धंधे की चाभी थमा दी गयी। राहुल जहाँ हैं वहां पहुँचाने में चाटुकारों का भी कम योगदान नहीं है, जो खुद काबिल और योग्य होते हुये भी सिर्फ मैडम को खुश करने के लिये चाटुकारिता में पी0 एच0 डी0 कर बैठे और राहुल को भावी प्रधानमंत्री तक घोषित कर दिया।
वहीँ राहुल खुद को नेता से ज्यादा अपने को गाँधी सिद्ध करने में लगे रहे। भारत में भारत को खोजने का क्या तात्पर्य था? गरीबों और दलितों के घर खाना खाकर वे क्या दिखाना चाहते हैं? उनके दिमाग में ये बात क्यों नहीं आयी कि यह गरीबी उसी कांग्रेस की देन है जिसकी कमान कभी उनके पिता राजीव गाँधी, दादी इंदिरा गाँधी, परनाना जवाहरलाल नेहरु के हाथों में थी । वही इंदिरा गाँधी जो "गरीबी हटाओ" का नारा देकर सत्ता में आयी थी। आज राहुल उन्ही ठगे गए गरीबों के घर मुस्कुराकर खाना खाते हैं, और उन्हें शर्म नहीं आती। अगर वो गरीबों के सच्चा हितैषी बनना चाहते तो कांग्रेस छोड़ अलग राजनीतिक सफ़र की शुरुआत करते तब वे जमीं से आसमां तक पहुँचते। दलितों से मिलने के बाद महँगी साबुन से नहाने वाले राहुल ये कैसी भारत की खोज कर रहे हैं? कौन नहीं जानता भारत की गरीबी के बारे में? कौन नहीं जानता भ्रष्टाचार के बारे में? कौन नहीं जानता अशिक्षा, बाल -शोषण, बाल-मजदूरी, किसानों की समस्या, जातीयता, प्रांतीयता के बारे में? आज जब इन समस्याओं का निदान की आवश्यकता है, राहुल समस्या खोज रहे हैं। आज जब बीमारी पता है, इलाज की आवश्यकता है तो राहुल बीमारी ढूंढ़ रहे हैं। आप सोच सकते हैं राहुल कैसे डाक्टर साबित होंगे ?
यू0 पी0 में कांग्रेस 23 सीट जीत क्या गयी जैसे राहुल आसमान जीत लाये। वरुण गाँधी का आपत्तिजनक बयान और उसके बाद मायावती सरकार द्वारा उनपर NSA लगाना, ये दोनों घटानायो ने कांग्रेस को 23 तक पहुंचा दिया , वरना अमेठी-रायबरेली के बाद तीन होना मुश्किल था। वरुण पर रासुका लगाने के कारण ब्राहमण वोट बीएसपी से कटकर कांग्रेस की तरफ चले गए, क्यों कि वहां बीजेपी टक्कर में नहीं थी। वहीँ मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के तरफ हुआ. इसमें राहुल का योगदान नहीं वरुण और मायावती का योगदान ज्यादा है।
व्यक्तिगत रूप से मैं राहुल गाँधी का प्रशंसक रहा हूँ। लेकिन नेता राहुल का मैं आलोचक हूँ। राजनीति में आते हीं उन्हें जिसप्रकार की सुविधाएँ व प्रमोशन मिला उतना क्या दुसरे कांग्रेसी युवाओं को मिला? ज्योतिरादिया सिंधिया, सचिन पायलट जो काबिल भी हैं और राहुल से ज्यादा राजनीति को समझते भी है , को भी इतनी सुविधायें मिलती तो ये भी राहुल की तरह "इंडियन यूथ आइकन" होते. संपन्न हुए चुनाव में अकेले राहुल 1,50,000 km से ज्यादा की यात्रा की . इतना मौका क्या किसी और को मिला?
इतना भाषण लिखने का उद्देश्य यही है कि इस बार जितने युवा लोकसभा में पहुंचे हैं, वे विरासत और बैसाखी के बदौलत पहुंचे हैं। राजनीतिक पार्टियाँ भले हीं युवा-युवा चिला रही रही थी, लेकिन भारतीय युवाओं का ध्यान चुनाव पर कम और IPL पर जयादा था। आखिर भारत के युवा कब जागेंगे?कबतक इन घटिया नेताओं के करतूतों को देखते रहेंगे? कबतक राजनीति से नफरत करेंगे? देश को बचाने के लिए एक-न-एक दिन उन्हें आना हीं होगा। वरना आज के नेता बाजारवाद के इस दौर में, जब खुद को भी बेचने से बाज़ नहीं आते, कहीं देश का हीं सौदा न कर डालें।
नेताओं के घर यहाँ अब बन गए दुकान,
डर है कहीं बेच न दें कल ये हिंदुस्तान।
चलते-चलते.......
चुनाव के दौरान में सैकड़ो लोगों से पूछा गया - देश का अगला प्रधानमंत्री किसे बनाना चाहिए? जितना जवाब आए उनमे एक नाम राहुल गाँधी भी था। मगर राहुल प्रधानमंत्री क्यों? जवाब सिर्फ एक- "राहुल युवा हें"। तो क्या सिर्फ युवा होना हीं प्रधानमंत्री बनने का मापदंड है? ये कुरफाती दिल मुझसे हीं पूछ बैठा, युवा तो मैं भी हूँ, तो क्या मैं भी प्रधानमंत्री बन सकता हूँ ?? आज के मौजूदा दौर में और देश के एक बहुत बड़े "बुद्धिजीवी" तबके के हिसाब से देखा जाए तो कभी भी नहीं ......................क्यों की मैं गाँधी नहीं हूँ | और फ़िर हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रजात्रन्तिक देश होने के बाद भी हमारे देश में एक राजशाही का ही बोलबाला है जहाँ राजा का बेटा ही राजा बनता है और प्रजा हमेशा प्रजा रहेती है |

जय हिंद |

2 टिप्‍पणियां:

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